दुर्गा पूजा का महत्व | नवरात्रि पर्व कैसे करे? | नवरात्रि में क्या होता है? | दुर्गा पूजा करने की विधि | नवरात्रि पूजा की सम्पूर्ण जानकारी

 

दुर्गा पूजा का संक्षिप्त परिचय:-

नवरात्रि पूजा हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। कुछ लोग नवरात्रि पूजा को दुर्गा पूजा भी बोलते हैं। नवरात्रि शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है। नवरात्रि का सन्धिविच्छेद " नव + रात्रि = नवरात्रि" है। अर्थात इसका अर्थ 9 राते होती है।

 नवरात्रि के 9वो दिन माता दुर्गा के नौ रूपो की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि पर्व के नौ दिन के पूरा होने के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है। भारत मे चैत्र मास एवं शरद ऋतु की नवरात्रि काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। दुर्गा माँ के तीन रूप सरस्वती, महाकाली, महालक्ष्मी देवियो के रूपो की पूजा नियमानुसार नवरात्रि में की जाती है। इस त्योहार को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक मनाया जाता है।



प्रसिद्ध नवरात्रि पर्व :-

  • चैत्र नवरात्र (वसंत नवरात्रि)
  • शारदीय नवरात्र ( शरद नवरात्रि)

नौ देवियो के नाम:-
(माता दुर्गा के निम्न स्वरूप है)
  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चन्द्रघंटा
  • कुष्मांडा
  • स्कन्दमाता
  • कत्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

नवरात्रि के नौ दिन निम्न देवियो की पूजा अर्चना होती हैं:-

  • पहला दिन :-  माता शैलपुत्री दुर्गा माँ की स्वरूपो में से एक है। नवरात्रि पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री  की पूजा की जाती है। आप को जानना जरूरी है कि माता शैलपुत्री हिमालय पर्वत की पुत्री है इसलिए इस देवी को शैलपुत्री नाम से जाना जाता है। शैलपुत्री माता अपने बाएँ हाथ मे कमल का फूल एवं दाएँ हाथ मे त्रिशूल धारण करती है। इनका वाहन/सवारी गाय है। इस दिन यानी नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के बाद माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसी दिन से दुर्गासप्तशती का पाठ शुरू हो जाता है। इनकी कृपा से पापियो का विनाश होता है तथा भक्तों को आशिर्वाद मिलता है । पहले दिन को सफेद कपड़ा एवं सफेद फूल चढ़ाना चाहिए तथा सफेद भोग लगाना चाहिए क्योंकि माता शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुएं पसन्द है।

  • "वन्दे वाञि्छतलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम
    वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् "

    • दूसरे दिन :- "ब्रह्मचारिणी"माता दुर्गा का दूसरा रूप है। नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। माता ब्रह्मचारिणी अपने बाएँ हाथ मे कमण्डल एवं दाएँ हाथ मे माला धारण करती है। इनके आशीर्वाद से भक्तों को विजय की प्राप्ति होती हैं। 
    " या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै  नमो नमः।। "

    • तीसरा दिन :-  नवरात्रि के तीसरे दिन माता चन्द्रघंटा की पूजा होती हैं। माता चन्द्रघंटा सिंह की सवारी करती है। माँ के मस्तक में घन्ते के सदृश्य अर्धचन्द्र होता है। इसी कारण माता को चन्द्रघंटा नाम से जाना जाता है।माता अपने दसो हाथ मे अस्त्र शस्त्र तथा बाण आदि धारण करती है। 
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

    • चौथा दिन :- कुष्मांडा माता की पूजा नवरात्रि पर्व के चौथे दिन होता है। पूजन नियमानुसार की जाती है। माता अपने हाथ मे वान, धनुष, कमल ,कलश,चक्र,गदा आदि धारण करती है तथा सिंह की सवारी करती है। माता कुष्मांडा  के तेज एवं प्रकाश से सभी दिशाए प्रकाशित होते रहती है। माँ कुष्मांडा अपने भक्तों को बल,यश,लम्बी उम्र प्राप्ति का आशीर्वाद देती है। माता को सूखे मेवे एवं फल आदि का भोग लगाना चाहिए।
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"

    • पांचवे दिन :- नवरात्रि के पांचवाँ दिन माता स्कंदमाता की पूजा नियमानुसार की जाती है। माता स्कंदमाता अपने हाथ मे कमल का पुष्प धारण करती है तथा सिंह की सवारी करती है। माता के भक्तों को परम् सुख की प्राप्ति होती है ,माँ के आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती हैं। 
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"


    • छठे दिन :- नवरात्रि के छठा दिन माता कत्यायिनी की पूजा नियमानुसार की जाती है। माता अपने हाथ मे कमल का पुष्प तथा तलवार धारण करती है तथा सिंह की सवारी करती है। माता कत्यायिनी की पूजा अर्चना से शक्ति एवं बाल की प्राप्ति होती है। कुवारी कन्या को माता मनचाहा वर प्राप्ति का आशिर्वाद देती है।
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कत्यायिनी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"

    • सातवें दिन :- नवरात्रि के सातवाँ दिन माता कालरात्रि की पूजा नियमानुसार की जाती है। माता के हाथो में तलवार,आदि धारण करती है। माता कालरात्रि अपने भक्तों का नकारात्मक ऊर्जा , भूत प्रेत आदि से रक्षा करती है। माता कालरात्रि को कुछ लोग शुभंकार नाम से पुकारते हैं।
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्री रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"

    • आठवें दिन :- नवरात्रि के आठवाँ दिन माता महागौरी की  पूजा नियमानुसार की जाती है।  माँ अपने हाथ मे त्रिशूल धारण करती है तथा वृषभ की सवारी करती है। माता अपने भक्तों के पापो को दूर करती है। माता अपने भक्तों पर विशेष ध्यान देती है। 
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"

    • नौवें दिन :-   नवरात्रि के नवाँ दिन माता सिद्धिदात्री की  पूजा नियमानुसार की जाती है। माता अपने हाथ मे कमल धारण करती है तथा सिंह की सवारी करती है। माँ की पूजा करने से माता के भक्तों को लौकिक एवं परलौकिक आदि कामनाओ की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
    "  या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।"


    नवरात्रि पूजन सामग्री:-
    (नवरात्रि पूजा की सामग्री)
    • माता दुर्गा की मूर्ति/प्रतिमा
    • गंगाजल
    • चुनरी (लाल रंग)
    • चावल (अक्षत)
    • आम के पेड़ की हरी पत्तिया
    • दुर्गा सप्तशती (किताब )
    • अगरबत्ती/धूप
    • चंदन/रोड़ी
    • पान एवं सुपारी
    • लौंग एवं इलाइची
    • गाय का गोबर
    • गाय का दूध
    • फल
    आदि


    नवरात्रि पूजन विधि:-
    नवरात्रि पूजा को लोग अनेक विधियों द्वारा करते है लेकिन इस आर्टीकल मैं इस आर्टीकल में साधारण विधि को बताऊंगा।

    "नवरात्रि पूजा की विधि"
    नवरात्रि पर्व के प्रथम दिन प्रातःकाल जग कर नित्य क्रिया को करने के बाद अच्छी तरह से अपने हाथ पैर धो ले , उसके बाद माता के पूजन स्थल को साफ कर दे समभव हो तो पूजा स्थल को शुद्ध पानी से धो दे। पूजा अर्चना वाले स्थान की सफाई करने के बाद स्नान करें। नहाने के बाद पूजा करने वाली स्थान पर माता दुर्गा की मूर्ति या प्रतिमा को रखे उसके बाद कलश स्थापना करें।

    कलश स्थापना विधि- सबसे पहले जिस जगह/स्थान पर कलश स्थापित करना है उस स्थान पर थोड़ा मिट्टी को बिछा दे उस मिट्टी पर जौ/धान का बीच डाल दें। अब कलश में लाल चुनरी लपेटे अब जिस जगह मिट्टी रखा गया है उस मिट्टी के ऊपर कलश को रख दे उसके बाद कलश में पानी भर दे ,अब कलश में कुछ गंगा जल के पानी को मिला दे , अब आम के हरे पत्ते (पल्लव) को कलश में ऐसे रखे कि पत्ते बाहर दिखाई दे,अब कलश के ऊपर ढकन रखे जिस ढक्कन में चावल भरा हो,अब ढक्कन के ऊपर दिप रख कर दिप/दिया को जला दी याद रहे वह दिप नौ दिन तक जलते रहे। अब आप कलश स्थापना की नयमानुसार पूजा अर्चना कर एवं भोग लागए । माता के दाएं तरह कलश स्थापना शुभ माना जाता हैं।
    अब कलश स्थापना के बाद नियमित रूप से नौ दिन तक दुर्गा सप्तशती का पाठ पढ़े एवं नियमानुसार पूजा अर्चना करते रहे।


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